अगर हम आज जिंदा हैं, तो किसको धन्यवाद कहें : बृहस्पति को कि शनैश्चर को ?
हमारे सौर-मंडल में आठ ग्रह हैं : चार भीतरी छोटे बुध-शुक्र-पृथ्वी-मंगल और
चार बाहरी बड़े बृहस्पति-शनि-यूरेनस-नेप्ट्यून। छोटे भीतरी जो बने हैं
धातु-मिट्टी से और बाहरी जो बने हैं हाइड्रोजन-हीलियम-मीथेन-अमोनिया जैसी
गैसों से। लेकिन इन चार और उन चार को बीच से क्षुद्र ग्रहों की एक पट्टी
बाँटती है। पट्टी जो मंगल से बाहर और बृहस्पति से भीतर स्थित है। पट्टी जिसमें
अलग-अलग आकार-आकृति के लाखों-करोड़ों सदस्य हैं। पट्टी जिसके अस्तित्व ने
वैज्ञानिकों के मन में तरह-तरह के प्रश्न उठा दिये हैं।
अगर आपको लगता है कि हमारा सौरमंडल बहुत साधारण है और इस जैसे कई-कई मिलेंगे,
तो आप बहुत हद तक गलत हैं। वैज्ञानिकों ने कई ऐसे सौर-मंडल पता लगाए हैं, जहाँ
मामला हमारे परिवार से बहुत अलग है। वहाँ बृहस्पति के आकार वाले बड़े ग्रह अपने
सूर्य (यानी तारे) के बहुत पास परिक्रमा-पथ पर घूम रहे हैं। यानी आकार तो
बृहस्पति का है, लेकिन तापमान और तारे से दूरी बुध या शुक्र सी। इन विचित्र
ग्रहों को विज्ञान में ऊष्म बृहस्पति (हॉट ज्यूपिटर) की संज्ञा भी दी गई है।
हमारा सौरमंडल लगभग साढ़े चार बिलियन वर्ष पहले अस्तित्व में आता है। किसी मृत
हुए तारे की अवशेष रूपी धूल और गैसें, जिनसे हमारी सौर नीहारिका बनी है -- वह
अपने विशाल शक्तिशाली गुरुत्व के कारण सघन होती हुई संकुचित होने लगती है। फिर
इसी संकुचन के कारण सबसे पहले सूर्य का अस्तित्व होता है। वह अपने गुरुत्व के
प्रभाव से सिकुड़ता है, तो उसके भीतर की हाइड्रोजनी भट्टी जल उठती है।
हाइड्रोजन परस्पर टकराकर हीलियम में बदलने लगती है और इससे निकलने वाली ऊर्जा
के कारण गैसें बाहर को भी फैलने लगती हैं। नतीजन दो बल परस्पर। संकुचित करता
गुरुत्व और फैलाव करता गैसीय प्रसार। अब आगे चलिए।
सूर्य के आसपास धूल और गैसें उसके चक्कर लगा रही हैं। इन्हीं के संकुचन से
सबसे पहले एक विशाल ग्रह बृहस्पति जन्मता है। जानते हैं इसकी स्थिति कहाँ है ?
वहाँ जहाँ आज हमारी पृथ्वी है। अब यहाँ नए सूर्य की परिक्रमा करता यह नया
बृहस्पति सूर्य की और चल देता है। पास। और पास। और पास। ऐसा लगता है कि वह
सूर्य में गिर ही जाएगा। ध्यान रखिएगा, यह सब तब हो रहा है, जब अभी सौरमंडल
स्थिर नहीं हो सका है। यह किसी नौसिखिए परिवार-सा है, जहाँ हर व्यक्ति अपनी
भूमिका समझने में लगा है।
लेकिन बृहस्पति नहीं गिरता सूर्य में। वह थम जाता है। कारण कि इसी समय शनैश्चर
का भी जन्म हो चुका है और वह भी सूर्य की ओर खिंचा जा रहा है। वह सूर्य के पास
जहाँ है, वह स्थिति बृहस्पति के भी समीप है। नतीजन बृहस्पति पर शनि का खिंचाव
पड़ता है। बृहस्पति रुक जाता है।
लेकिन बृहस्पति के इस भीतरी यात्रा में न जाने कितने नन्हें पिंड नष्ट-ध्वस्त
हो गए हों। छोटे ग्रह जो पहले रहे हों, लेकिन उन्हें यह विशाल दानव लील गया
हो। या फिर उनके टकरा कर टुकड़े-टुकड़े हो गए हों।
शनैश्चर का प्रभाव यहीं नहीं रुकता। परस्पर प्रभाव से अब ये ग्रह बाहर, सूर्य
से दूर हटने लगते हैं। बाहर। और बाहर। और बाहर। और फिर ये वहाँ स्थित हो जाते
हैं, जहाँ ये आज हैं। इस बीच बृहस्पति अपने साथ नन्हें क्षुद्र ग्रहों को
इधर-उधर, बाहर-भीतर छितराता चलता है। नतीजन एक और विचित्र और अद्भुत बात सामने
आती है।
सौरमंडल के भीतरी ग्रह आकार में एक क्रम के अनुसार हैं। बुध सबसे छोटा है,
शुक्र उससे बड़ा और पृथ्वी उससे बड़ी। लेकिन फिर यह क्रम टूटता है और मंगल
पृथ्वी से छोटा ही जन्म लेता है। इस अजीब घटना का कारण भी वैज्ञानिक बृहस्पति
को ही मानते हैं। उसका भीतर से बाहर की ओर बढ़ना और क्षुद्र ग्रहों समेत
धूल-गैस को हटाना मंगल के निर्माण के लिए कम सामग्री रख छोड़ता है। नतीजन मंगल
को वह आकार नहीं मिल पाता, जिसकी की उम्मीद थी।
बृहस्पति के हमारे ऊपर कई अहसान हैं। बाहर से भीतर की ओर आ रहे न जाने कितने
ही धूमकेतु यह विशाल ग्रह लील जाता है। तमाम उल्काओं-क्षुद्र ग्रहों की मार से
यह हमें बचाता है। लेकिन फिर सत्य यह भी है कि बृहस्पति के मार्ग में या आसपास
भी पड़ने वाले पिंड किसी भी दिशा में जा सकते हैं। वे बाहर जाने और बृहस्पति
में समाने की बजाय भीतर भी आ सकते हैं। पृथ्वी अपने विशाल साथी के इस पथराव
में आ सकती है और उसका जीवन नष्ट हो सकता है।
क्या लाखों वर्ष पहले उल्कापात से विनष्ट हुए डायनासॉरी जीवन के पीछे बृहस्पति
की कोई क्रूरता थी ? हम नहीं जानते। हम जानने के प्रयास में हैं। हम अपने ही
साथ के ग्रहों को समझ रहे हैं। फिलहाल यह परिकल्पना जिसमें पहले बृहस्पति
सूर्य की ओर भीतर जाता है और फिर शनि के प्रभाव से रुककर बाहर हटता है, ग्रैंड
टैक हायपोथीसिस कही जाती है और विज्ञान में बहुचर्चित है।
तो संभव है, हम और हमारा ग्रह अगर आज जी रहा है, तो इसके पीछे बृहस्पति से
अधिक शनैश्चर की भूमिका है। उसने पीछे से हाथ पकड़ कर कहा होगा, "कि कहाँ जाते
हो बड़े भाई, किसी को जीने नहीं दोगे क्या ?"
विज्ञान को पढ़ते रहिए, उसे जीते रहिए। अनुभव समेटिए, उनसे अनुभूतियाँ उपजाइए।
नया साहित्य विज्ञान की जानकारियों के बिना लिखा नहीं जा सकेगा।